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________________ श्रीशंभवनाथस्तुति । १३ चिन्तामणिर्वा न च कल्पवृक्षो न कामधेनुर्न परं च वस्तु । तुल्यं हि त्वत्पादपयोरुहस्य । किं वा प्रभो तद्रजसोपि लोके ॥६॥ चिन्तामणिौ नु कल्पवृक्षो ददाति स्वल्पं बहुयाचनातः। को श्रीपतेस्ते वरना मंत्र: स्वर्मोक्षलक्ष्मी च ददाति नित्याम् ॥७॥ अर्थ-हे प्रभो ! चिंतामणि रत्न अथवा कल्पवृक्ष अथवा कामधेनु अथवा इच्छानुसार फल देनेवाले और भी पदार्थ आपके चरणकमलोंके अथवा आपके चरणकमलोंकी धूलिके समान भी इस संसारमें कभी नहीं हो सकते । इसका भी कारण यह है कि चिन्तामणि रत्नसे, कामधेनुसे अथवा कल्पवृक्षसे बहुतसी याचना की जाय तब ये थोडासा फल देते हैं परंतु वे लक्ष्मीके स्वामी आपका नाम रूपी मंत्र सदा रहनेवाली स्वर्ग मोक्षकी लक्ष्मीको दे डालता है । इन्द्रोप्यशक्तोस्ति गुणान् हि वक्तुं परस्य लोकस्य च का कथान। तथाप्यहं ते ननु गाढभक्त्या गायामि किंचित्तव रंजनाय ॥८॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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