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________________ ३ NAL चतुर्विंशतिजिनस्तुति । अर्थ- जब विना बोये उत्पन्न हुए धान्य सब नष्ट होगये और अन्नके विना सब जीव दुःख समुद्रमें डूब गये तब उन जीवोंको दुःखी देखकर भगवान् वृषभदेवने उन सब जीवोंको असि, मसि, शिल्प आदि आजीविकाके उपायोंमें लगा दिया था। त्वमेव माता च पिता प्रजानां शान्तिप्रदः पालकपोषकत्वात् । स्वमेव मित्रं हितचिंतकवा द्वा शंकरः को सुखदर्शकत्वात् ॥६॥ अर्थ- हे भगवन् ! समस्त प्रजाका पालन पोषण करनेके कारण आप ही उस प्रजाके माता हैं, आप ही पिता हैं और आप ही शांति प्रदान करनेवाले हैं। भाप समस्त जीवोंका हित चिंतन करते हैं इसलिये आप ही सबके मित्र हैं और समस्त पृथ्वीपर आप ही सुख देनेवाले हैं इसलिये आपही शंकर कहलाते हैं। क्षेमत्वयोगात्कुशलत्वयोगा द्भपस्त्वमेवात्र सुरक्षकत्वात् । प्रजासु पुत्रेषु समत्वयोगात् त्राता प्रजानां परमार्थबुध्द्या ॥७॥ अर्थ- हे भगवन् ! आप सबके लिये क्षेम कुशल देनेवाले हैं और सपकी रक्षा करनेवाले हैं इसलिये इस संसारमें
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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