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________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः || मुनिराज श्री कुंथूसागरविरचित चतुर्विंशतिजिनस्तुति | वृषभदेवस्तुति । मरुदेव्या जगन्मातुर्नाभिभूपाज्जगत्पितुः । धर्ममूर्तिर्दया सिंधुर्जातः श्रीवृषभैश्वरः ॥ १ ॥ । अर्थ - भगवान् वृषभदेव स्वामी जगतकी माता मरुदेवी और जगत के पिता राजा नाभिराय के पुत्र थे । तथा वे धर्मकी मूर्ति थे और दयाके सागर थे । श्रीनाभिसूनोर्भुवि पादयुग्मं वंद्यं च पूज्यं हृदि चिन्तनीयम् । स्वमक्षदं शान्तिसुखप्रदं च मां पातु शीघ्रं विषमाद्भवाब्धेः ॥ २ ॥ अर्थ - भगवान् वृषभदेव के दोनों चरणकमल इस संसार में वंदनीय हैं पूज्य हैं अपने हृदय में चितवन करने योग्य हैं | स्वर्ग मोक्षके देनेवाले हैं और शांति सुखके देनेवाले हैं ऐसे वे भगवान वृषभदेवके दोनों चरणकमल इस संसाररूपी विषम समुद्र से शीघ्र ही मेरी रक्षा करो ।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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