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________________ श्री शान्तिसागरचरित्र | किया और वार वार उनकी स्तुति की। वे महामुनि थोडे दिन वहां रहकर फिर वहांसे भी आगे चले । इत्युत्तरदिकसन्धिः । ५० कालीदासवकीलस्य केवललल्लुधर्मिणः ॥८॥ मगनलालनाथस्य प्रार्थनावशतस्तदा । दयासिंधुर्जगद्वंद्य ईडरं प्रति सोऽगमत् ॥ ९ ॥ - अर्थ — कालिदास वकील, केवलभाई, लल्लूभाई, मगनलाल, नाथा आदि धर्मात्मा भाइयों की प्रार्थनासे वे जगत् वंद्य दयासागर आचार्य ईडर के लिये चले | भव्यान् प्रमुदितान् कुर्वञ्जिनधर्मं प्रभावयन् । नामयन् राजलोकांच तन्वन् धर्मोपदेशनाम् ॥१० स्वात्मानं चिंतयन् सूरिः दयाधर्मं प्रपालयन् । गोरलं नगरं प्राप्तः स संधेन क्रमात् मुदा ||११|| अर्थ - भव्यजीवोंको प्रसन्न करते हुए, जिनधर्मकी प्रभावना करते हुए, राजलोगोसे नमस्कार कराते हुए, धर्मोपदेश देते हुए, अपने आत्माका चितवन करते हुए और दया 1 धर्मको पालन करते हुए, वे आचार्य अनुक्रमसे चलकर आनन्दके साथ गोरलनगर में पहुंचे । दृष्ट्वा रम्यतरं क्षेत्रं चैकान्तं निरुपद्रवम् । सूरिणा गुरुवर्येण वर्षायोगो धृतस्तदा ॥ १२ ॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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