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________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र। ___ अर्थ- मार्गमें बहुतसे राजालोक उनके दर्शनको आये और आचार्य शांतिसागरके मोक्ष देनेवाले प्रिय वचनोंको सुनकर उन्होंने आचार्य महाराजके दोनों चरणोंको नमस्कार किया। त्यक्त्वा तदुपदेशेन मद्यं मांसमभक्ष्यकम् । बभूवुर्धार्मिका लोकाः दर्शनेन तपस्विनः ॥७६॥ अर्थ- आचार्य महाराजके उपदेशसे और उन महा तपस्वीके दर्शनसे बहुतसे लोग मद्य, मांस आदि अभक्ष्योंका त्यागकर धार्मिक बनगये। गोपीलालफतलालजमुनालालधर्मिणः । प्रार्थनावशतः श्रीमानिन्द्रलालस्य शास्त्रिणः॥७७ कोटतुल्यैर्महापत्तैः सुन्दरैः कतिचित्शतैः । जिनालयैर्महारम्यं हट्टैहम्मनोहरम् ॥७८॥ चचाल जैपुरं सूरिय॑ज्जैनानां महापुरम् । सध्वजैस्तोरणै रम्यैः शालाभिश्च विराजितम् । ___अर्थ-तदनंतर सेठ गोपीलाल, फतेहलाल, जमुनालाल ___ और इन्द्रलाल शास्त्रीकी प्रार्थनासे वे श्रीमान् आचार्य जयपुरके __ लिये चले । वह जयपुरनगर किलेके समान, महापवित्र सैकड़ों सुंदर चैत्यालयोंसे अत्यंत मनोहर है, बाजार और मकानोंसे मनोहर है, श्रेष्ठ ध्वजाओंसे, मनोहर तोरणोंसे और अनेक शालाओंसे शोभायमान है तथा जैनियोंका सबसे बडा नगर है।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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