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________________ wwwmmmmmmmmmmmm श्रीशान्तिसागरचरित्र। स्वधर्म स्थापयन भव्यान् भवभीतिं विनाशयन् । जनानां नाशयन्क्लेशं पालयन समितीः पराः॥३१ काशी प्रयागदेशेच दिनानि कतिचिस्थितः। संघेन सह तत्रस्थान भन्यान संबोध्य श्रावकान्॥ ततो चलत्स्वसंघेन प्राप्तश्च कटनीपुरम् । लोके दिगम्बरत्वस्य महत्वं दर्शयन् विभुः ॥३३॥ . अर्थ- मार्गमें भव्यजीवोंको अपने धर्ममें स्थापन करते जाते थे, लोगोंके संसारसंबंधी भयोंको दूर करते जाते थे, उनके दुःखोंको नष्ट करते जाते थे और श्रेष्ठ समितियोंका पालन करते जाते थे। इसप्रकार चलते हुए वे संघके साथ काशी और प्रयाग देशमें पंहुचे तथा वहां कुछ दिनतक रहे और वहांके भव्यश्रावकोंको धर्मोपदेश दिया। तदनतर अपने संघकेसाथ फिर वहांसे चले और संसारभरमें दिगम्बर व्रतका महत्व दिखलाते हुए, कटनी नगरमें पहुचे। कन्हैयालालमुख्यानां जगन्मोहन शास्त्रिणाम् । तथा टोडरमल्लानां विशेषप्रार्थनावशात् ॥३४॥ ज्ञात्वा धर्मानुकूलं हि क्षेत्रं योग्यं तथा जनान् । वर्षायोगो धृतस्तत्र जिनधर्मप्रवर्द्धकः ॥३५॥ अर्थ- वहांपर कन्हैयालाल, टोडरमल्ल आदि मुख्य श्रावकोंकी प्रार्थनासे तथा जगन्मोहन शास्त्रीकी विशेष प्रार्थनासे
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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