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________________ || श्रीवीतरागाय नमः || मुनिराज श्री कुंथुसागरविरचित संक्षिप्त आचार्यश्रीशान्तिसागर जीवनचरित्र | नमस्कृत्य जिनं शान्ति सुरिं श्रीशान्तिसागरम् । वैराग्यवर्द्धकं वक्ष्ये गुरुवर्यचरित्रकम् ||१|| अर्थ — मैं सोलहवें तीर्थंकर भगवान् शान्तिनाथको नमस्कार करता हूं और आचार्य श्री शान्तिसागरको नमस्कार करता हूं । तदनंतर मैं अपने गुरुवर्य आचार्य शांतिसागरका वैराग्यं बढानेवाला जीवन चरित्र कहता हूं । शान्तिसागर योगीन्द्रचरितं पापनाशकम् । पूतं भव्यजनानन्ददायकं बोधवर्द्धकम् ॥२॥ अर्थ - आचार्य शांतिसागरका जीवनचरित्र पापोंको नष्ट करनेवाला है, अत्यंत पवित्र है, भव्यजीवोंको आनंद देनेवाला है और सम्यग्ज्ञानको बढानेवाला है । असंख्यातेषु द्वीपेषु जम्बूद्वीपो वरो मतः । तत्रापिमा भारतक्षेत्रस्यार्यखण्डं मनोहरम् ||३|| अर्थ - असंख्यात द्वीपोंमें यह जम्बूद्वीप सबसे श्रेष्ठ है उसमें भी भरतक्षेत्र और भरत क्षेत्रमें भी आर्यखण्ड अत्यंत मनोहर है ।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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