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________________ * *- * * *- ६ -*- वृहज्जैनवाणीसग्रह AnnanANAMA... * सका किया उद्धरण समुद्धरण जु टीका । बारह हजारके - * मान ज्ञानकी टीका । जैवत०॥१७॥ तिसहीसे रचा कुंदकुंद जीने सुशासन । जो आत्मीक पर्म धर्मका है प्रकाशन ॥ पंचास्तिकाय समयसार सारप्रवचन । इत्यादि सुसिद्धांत * स्यादवादका रचन जिवंत०॥१८॥सम्यक्त ज्ञान दर्श सुचा रित्र अनूपा। गुरुदेवने अध्यात्मीक धर्म निरूपा ॥ गुरुदेव * अमीइंदुने तिनकी करी टीका । झरता है निजानंद अमीवृंद सरीका । जैवंत० ॥१९॥रचनानुवेदभेदके निवेदके करता। गुरुदेव जे भये हैं पापतापके हरता ॥ श्रीबट्टकेरदेवजी बसुनंदजी चक्री। निग्रंथग्रंथपंथके निरग्रंथके शक्री ॥ जैवंत० ॥२०॥ योगींद्रदेवने रचा परमात्माप्रकाश । शुभचंद्रने किया है ज्ञान आरणव विकाश ॥ की पदनंदजीने पद्मनंदिपच्चीसी । शिवकोटिने आरधना सुसार रचीसी जैवंत ॥२१॥ दोसंघ तीनसंघ चारसंध पांचसंध। पंसंध सात संघलों गुरु रचा है प्रबंध ॥ गुरु देवनंदिने किया जैनेन्द्र * व्याकरन । जिस्से हुवा परवादियोंके मानका हरन ॥ ३०॥ ॥२२॥ गुरुदेवने रची है रुचिर जैनसंहिता । वरनाश्रमादि। की क्रिया कहैं हैं जु सैहिता ॥ वसुनंदि वीरनंदि यशोनंदि संहिता । इत्यादि बनी हैं दशोंप्रकार संहिता । जै० ॥२३॥ * परमेयकमलमारतंडके हुये कर्ता प्रभेन्दु माणिक्यनंदि नंय प्रमाणके भर्ती ॥ जैवत सिद्धसेन सुगुरु देव दिवाकर । जै वादिसिंह देवसिंह जैति यशोधर ॥ जैवंत० ॥२४॥ श्रीदत्त ।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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