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________________ *- KE - 2 ३७४ बृहज्जैनवाणीसंग्रह १९५-आठ ऋद्धि। १ अणिमा २ महिमा ३ लघिमा ४ गरिमा ५ प्राप्ति ६ प्राकाम्य ७ ईशत्व ८ वशित्व। . १९६-पांच लब्धि। १क्षायोपशम लब्धि २ विशुद्धलब्धि ३ देशनालब्धि * ४ प्रायोग्यलब्धि ५ करणलब्धि। १९७-दशप्रकारका सम्यग्दर्शन। १ आज्ञा सम्यक्त्व २ मार्ग सम्यक्त्व ३ वीज सम्यक्त्त्व ४ उपदेश सम्यक्त्व ५ सूत्र सम्यक्त्व ६ संक्षेप सम्य* क्त्व ७ विस्तार सम्यक्त्व ८ अर्थ सम्यक्त्व ९ अवगाढसम्यक्त्व १० परमारगाढ़ सम्यक्त्व ।। १०८-सात मौनसमय। १ भोजन समय २ मैथुन समय ३ वमन समय ४ स्नान । समय ५ मलमोचन समय ६ सामायिक समयं ७ पूजन समय। १९९-भोजनके सात अन्तराय। १ हड्डी २ मांस ३ पीव (राध) ४ रक्त ५ गीला चमड़ा। १६ विष्ठा ७ मराहुआ प्राणी इनके दृष्टिगोचर होनेसे । श्रावकको भोजनका त्याग करना चाहिये ।। २००-पाचप्रकारके ब्रह्मचारी। १ उपनयन २ अदीक्षित ३ अवलंब ४ गूढ ५ नैष्ठिक।। ** * * *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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