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________________ K -52-25 AAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAN । ३६८ बृहज्जैनवाणीसंग्रह। १७४-नरकोंके श्रेणिबद्ध विलोंकी सख्या।। 'प्रथम नरकमें श्रेणीबद्ध विले ४४२० दूसरे नरकमें। * २६८४ तीसरे नरकमें १४७६, चैथे नरकमें ७००, पांचवें । नरकमें २६० छठे नरकमें ६० और सातवें नरकमें ४ ऐसे * सातौ नरकोंमें ९६०४ इन्द्रकविले हैं। १७५-नरकोंके प्रकीर्णक बिल । . प्रथम नरकमें प्रकीर्णक विल २९,९५,५६७ दूजे नरकमें। 1 २४,९७,३०५ तीजे नरकमें ८४,९८,५१५ चौथे नरकमें । ६,९९,२२३ पांचवें नरकमें २,९९,७३५ छठे नरकमें । * ९९,९७२ सातवें नरकमें नहीं है। इसप्रकार तिरासी ८३ । लाख नब्बे ९० हजार तीन ३ सौ सैंतालीस ४७ प्रकीर्णक बिल हैं। १७६-चारप्रकारका दुःख। १क्षेत्रजनित दुःख २ शरीरजनित दुःख ३ मानसिक S दुःख ४ असुरकुमार देवोंकृत दुःख । १७७-छयानवै कुभोगभूमि। लवण समुद्रके दोनों किनारोंपर २४-२४ कुभोगभूमियां । है, इसीप्रकार कालोदधि समुद्र के दोनों किनारोंपर २४-२४ कुभोगभूमियां हैं ऐसे कुल ९६ हुई । १७८-पांच मंदरगिरि। 1 जम्बूद्वीपमें मन्दर [मेरु] गिरि १, धातकीखंडमें २ और * पुष्करद्वीपमें २ इसतरह ५ मंदरगिरि हैं।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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