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________________ ANA AMANARAN * 95T वृहज्जैनवाणीसंग्रह - ३१३ । तमखंडित मंडितनेह, दीपक जोवत हों। तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोबत हो ॥श्रीवीर०ादीप हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा। तुम पदतर खेचत भूरि, आठों कर्म जरा ॥श्रीवीर०॥धूप। * रितुफल कलवर्जित लाय, कंचन-थार भरा। * शिवफलहित हे जिनराय, तुमडिंग भेट घरा ॥श्रीवीर फलं जलफल वसु सजि हिमथार, तनमन मोद धरों। गुण गाऊं भवदधितार, पूजत पाप हरों ॥ श्रीवीर० ॥ अर्घ । पंचकल्याणक । राग टप्पाचालमें। . * मोहि राखो हो, सरना, श्रीवर्धमान जिनरायजी, मोहि० ॥ गरभ साइसित छडलियो तिथि, त्रिशला उर अब हरना। * सुर सुरपति तित सेव करयो नित, मै पूजों भवतरना ।मोहि० *ओं ही आपाढशुम्लपष्टयां गर्ममंगलमण्डिताय श्रीमहावीर० अर्ध ॥ जनम चैतसित तेरसके दिन, कुंडलपुर कनवरना। । सुरगिर सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भवहरना ॥मोहि०॥ *ओं ही चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीमहावीर० अयं ॥ मगसिर असित मनोहर दसमी, ता दिन तप आचरना। १ नृप कुमारघर पारन कीनो, मै पूजों तुम चरना ॥ मोहि० ॥ ? 1ओं ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपोमंगलमण्डिताय श्रीमहावीर० अर्घ ॥ * शुकलदशैं वैसाखदिवस अरि, घात चतुक छय करना । के बललहि भवि भवसर तारे, जजौं चरन सुख भरना ||मोहि *ओं ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीमहावीर० अर्घ ॥ * -2-RAKSHARMARA*
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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