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________________ वृहज्जैनवाणीसंग्रह ३०५ खेऊं अष्टकरम जारनको, धूप धनंजयमाहिं सुडार | शांति० ॥ धूपं नारंगी बादाम सु केला, एला दाडिम फल सहकारि । कंचन - थालमाहिं धर लायो, अरचत हूं पाऊं शिवनारि । शांतिनाथ० ॥ फलं ॥ जल फलादि वसु द्रव्य सम्हारे, अर्ध चढाऊं मंगल गाय | 'बखतावर ' के तुमही साहब, दीजै शिवपुरराज कराय । शांतिनाथ || अर्ध || पंचकल्याणक - भादों सप्तम स्यामा, सर्वारथ त्याग नागपुर आये । माता एरा नामा, मैं पूजूं अर्ध सुभ लाये ॥ १ ॥ ओं ह्रीं भाद्रपद कृष्णसप्तम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय अघ जनमे तीरथनाथं, वर जेठ असित चतुर्दशी सोहै । हरिगण नावें माथं, मै पूजूं शांतिनाथ जुग जोहै ॥ २ ॥ ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीशांतिनाथ अर्ध ॥ चौदसि जेठ अंधारी, काननमें जाय जोग प्रभु लीना । नौ-निधि रतन सु छारी, मैं बंदू आत्मसार जिन चीना ॥ ३ ॥ ओं ही ज्येष्ठ कृष्णचतुदश्यां निःक्रममहोत्सवमंडिताय श्रीशांति ० अ ।। पौस दसै उजियारा, अरि घात ज्ञानभानु जिन पाया । प्रातहार्य वसुधारा, मै सेऊँ सुरनर जासु यश गाया ॥ ४ ॥ ओं ह्रीं पौषशुक्लदशम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीशांतिनाथ अघं ॥ सम्मेद शैल भारी, हनिकर अघाती मोक्ष जिन पाई । जेठ चतुर्दशि कारी, मैं पूजूं सिद्ध थान सुखदाई ॥ ५ ॥ बों हीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्री शांतिनाथ० अघं ॥ 20
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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