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________________ # २६० बृहज्जैनवाणीसंग्रह के तंदुल सित सोमसमान, सुंदर अनियारे । मुकताफलकी उपमान, पुंज धरों प्यारे ।।चौबी०॥अक्षतान्।। वरकंज कदंब कुरंड, सुमन सुगंध भरे। जिन अग्र घरों गुनमंड, कामकलंक हरे ॥ चौबी० पुष्पं ।। मनमोदनमोदक आदि, सुंदर सद्य बने । रसपूरित प्रासुक स्वाद,जजत छुधादि हने चौबीनैवेद्य।।। । तमखंडन दीप जगाय, धारों तुम आगै । * सब तिमिरमोह क्षय जाय, ज्ञानकला जागे ॥चौबी०॥दीपं दशगंध हुताशनमाहि, हे प्रभु खेवत हों। मिस धूम करम जरि जाहि, तुम पद सेवत हों ।।चौबी०आधूपं १ शुचि पक्क सुरस फल सार, सबऋतुके ल्यायो। में देखत दृगमनको प्यार, पूजत सुख पायो ।चौबी०फिली जल फल आठों शुचिसार, ताको अर्घ करों। तुमको अरपों भवतार, भव तरि मोक्ष वरों ॥चौबी०॥अर्घ्य जयमाला दोहा-श्रीमत तीरथनाथपद, माथ नाय हितहेत। ___गाऊं गुणमाला अवै, अजर अमरपद देत ॥ १॥ __ छंद धत्तानन्द-जय भवतम भंजन जनमनकंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छकरा । शिवमगपरकाशक अरिगननाशक, चौबीसौं जिनराज वरा ॥२॥ छन्द पद्धरी-जय ऋषभदेव रिषिगन नमंत । जय अजित जीत वसुअरितुरंत ॥ जय संभव भवभय करत चूर । जय।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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