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________________ AAANAAAAAAAAAAAAAAANN .A.AAAAAPh. MARArn १२ वृहज्जैनवाणीसंग्रह पंचनमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ १॥ अपवित्रः पवित्रो । १ वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत्परमात्मानं स वाह्या भ्यंतरे शुचिः। अपराजितमंत्रोंऽयं सर्वविघ्नविनाशनः।। । मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं मंगलं मतः॥ ३॥ एसो पंचणमो- यारो सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि, पढम होइ मंगलं ॥ ४ ॥ ३-सामायिक करनेकी विधि।। मोक्षप्राप्तिका सामायिक एक मुख्य उपाय है। सामायिकके विना * अष्ट कर्म नष्ट नहीं हो सकते इसलिये आचार्योंने इसका निरूपण चार स्थानोंपर किया है। १-श्रावकके १२ बतोंमें पहिला शिक्षात्रत। १२-श्रावकको ११ प्रतिमाओंमें तीसरी प्रतिमा। ३-पांच प्रकारके चारित्रोंमें पहला चारित्र । ४-पडावश्यकोंमें प्रथम आवश्यक।। * इसलिये प्रत्येक श्रावककको प्रति दिन सबेरे ही एक वार, द्वितीय । * प्रतिमाधारीको सुबह शाम दो बार और तीसरी प्रतिमाधारीको सुबह दुपहर, शाम तीन बार सामायिक करना चाहिये। । सामायिकका काल जघन्य दो घड़ी (४८ मिनट), मध्यम ४ घड़ी, उत्कृष्ट ६ घड़ी है। जो प्रतिमाधारी नहीं हैं उनकेलिये कोई नियम * नहीं है, वे यथावकाश कम ज्यादा भी कर सकते हैं। सामायिक सबेरे । * ब्राह्म मुहूर्तमें अर्थात् ४ बजे उठ हाथ पैर धो शुद्ध हो कपड़ा * बदल एकांत स्थानमें उत्तर या पूर्व मुख कर करना चाहिये। * मंदिरजीमें उत्तर या पूर्वमुख बैठनेका कोई नियम नहीं है। * सामायिक करनेवाला पहले दर्भासन अथवा चटाईपर सीधा खड़ा । - * ।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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