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________________ कथासंग्रह | उपदेशी एवं आध्यात्मिक ४५५ पद... ... .... ४६१ से ५३७ तक नाम पाठ, पृष्ठ नाम पाठ . पृष्ठ जकड़ी दौलतराम्जीकृत (२) ४४८५ , "तेरहवां अध्याय जकड़ी रामकृष्णकृत ४५१ जकड़ी जिनदासकृत ४५३ । भजनसंग्रह। ... ग्यारहवां अध्याय । प्रतिष्ठित प्राचीन कवियों ___ एवं नवीनकवियोंके हजूरी, ..' निशिभोजन जनकथा अठारहनातेकी कथा . . ४५७। अष्टजिनवरकथा - ४६१ - चादहवा अध्याय । . चौदहवां अध्याय।। सुगंधदशमीव्रतकथा . ' फुटकरसंग्रह। अनंतचौदशत्रतकथा ४७ समाधिमरण भाषा. छोटा' , ५३७ रत्नत्रयव्रतकथा - ४७० समाधिमरण भाषा बड़ा ५३६ दशलक्षणव्रतकथा ४३ संक्षिप्तं सूतकविधि ५४८ श्रीरवित्रतकथा : - पंद्रहवां अध्याय । पुष्पाजलिवतकथा ४६ वारहमासादि संग्रह । ' . बारहवां अध्याय। बारहमासा सीताजी उपदेशसंग्रह। बारहमासा राजुल . फूळमालपच्चीसी ४८३ बारहमासा मुनिराज धर्मपचीसी ४८७ बारहमासा बनदंत ५५७० ज्ञानपचीसी .... ४८६ ..नेमिन्याह. ' ।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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