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दान लाभ निज भोग, शुद्ध स्वगुण उपभोग। आज हो अजोगी कती भोक्ता प्रभु लडोजी ॥ ६॥ ___ अर्थ:-अंतराय कर्मना क्षयवडे हे भगवंत ! आपमा दानादिक लब्धिउ क्षायिक भावे वर्ते छे.
वीर्यगुणनी सहायवडे सर्वे गुणो परिणमे छे. तेम ज्ञानगुणना उपयोग विना वीर्यगुण स्फुरायमान थइ शके नहि माटे वीर्यने ज्ञानगुणनी सहायता के नथा शुद्धज्ञान परिणामने चारित्रनुं सहाय छे. वजी चरित्र पराचरण रुप न परिणमे से चारित्रने ज्ञानगुणनो उपकार छे. एम एक गुणने वीजा गुणोनी सहाय छे, ते सहायरुप दानना कर्ता हे भगवंत ! प्रापज छो. वली एबु दान भाप निंरतर पाप्यां करो छो माटे आप अक्षय दाता छो. तथा ते दानना प्रभाववडे सर्वे गुणो पोतानी शुद्ध परिणतिए परिणमे छे, ते रुप लाभ लेनार पण प्रापज छो. एम भापमां दाता पात्र अने देयनी अभेदता छे. एम ज्ञानादि परिणाम हमेशा शुद्धपणे वर्ते छे. तजन्य भानंदना वेदनारा छो तेथी ज्ञानादि पर्यायना आप निःप्रयास पणे हमेशां भोक्ता को.