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थाय छे. सम्यक् दृष्यादि अविरति गुण बडे देवायुनो बंध थाय छे.
बालतप, अकामनिर्जरा, सरलता. अनागारीपणुं, विगेरे गुण वडे शुभनामकर्मनो बंध थाय छे. एथी विपरीत प्रातरण वडे अशुभ नामकर्मनो घंध थाय छे.
गुणद्रष्टी, मद रहितता, तत्त्व भणवा भणाववा उपर रुचि, जिन भक्तिमा मग्नता विगेरे गुणा बडे उंचगोत्रनो बध थाय छे. एथी विपरीत पाचरण वडे नीचगोत्रनो बंध थाय छे.
गुर्वादिकनी भक्ति, क्षमा, करूणा, व्रत, संयम याग, कषाय, विजय, दान, शीलादिक धर्ममा दृढता विगेरे गुणोथी शातावेदनीयनो बंध थाय छे. तेथी विपरीत आचरण वडे अशातावेदनीयनो बंध थाय छे-शंका समकीत, तप, संयम, क्षमा विगेरे थी प्रास्त्रव बंध केम संभवे ? उत्तर " रत्नत्रय मिह हेतु-निर्वाणास्यैव भवति नान्यस्य ॥ आस्त्रवति यत्त पुण्यं, शुभोपयोगऽय मपराध ॥" रत्नत्रय मात्र निर्वाण हेतु छे पण शुभाशुभ कर्मना ___ हेतु नथी, देवादिक गतिना हेतु नथी. पण ज्यांसुधी