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नाश करवानो हेतु छे, कारणके आपणो श्रात्माज परमात्मपदनुं उपादान छे, तेज परमात्म भावे परिणमनार छ माटे परमात्मपद क्षेत्रांतरे नथी अने क्षेत्रांतरे रहेली वस्तुनी कामनाज दुःखदायी छे माटे परमात्म पदनी कामना थवाथी अन्य सर्व कामनानो उच्छेद थाय छे. ते परमात्मपदनी कामनाना हेतु श्री जिनेश्वर भगवंत छ, तेथी तेमनी लेबा सत्तामा रहेली ज्ञानादि अनंत लक्ष्मीने प्रगट द्रष्टीगोचर करवाने तथा आपणा आस्माने गुणनिधान पूज्य पद प्रापवाने पुष्ट हेतु छे. ॥ ४ ॥
॥ परमेश्वर आलंबना, राच्या जेह जीव ॥ निर्मल साध्यनी साधना, साधे तेह सदीव ॥ चंद्र० ॥ ५॥
अर्थ:-जगत् चूडामणि तरण तारण परमेश्वरनो श्राश्रय जे भव्य जीवोर रुचि बहुमान पूर्वक ग्रहण कर्यो छे तेज पुरुषो निरंतर पोताना शुद्ध साध्यने साधवावाला छे. परमात्मपद् जेमां प्रगटपणे छे एवा तीर्थकर भगवंत परमात्मपद साधनाना पुष्ट हेतु थइ. शके,पण अन्य कुदेवादिक जे पो - अशुद्ध