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________________ तत्वज्ञानका साधन । [७५ शिष्य-हम मनुष्य है, हमारा काम विचारपूर्वक हरएक काम करनेका है यह निर्देश है । हमारे स्वामी हम है या हमारे पिता माता है। हमारा साधन-या हमारी उत्पत्तिका कारण हमारा बाधा कर्म है तथा हमारे माता पिता है। हमारा आधार यह नगर है जहां हम पैदा हुए या वह कुल स्थान है जहा हम जासक्ते है ।।. हमारी स्थिति हमारी उम्र है जबतक हम जीवेंगे। हमारे भेद बालकपन, युवापन, वृद्धपन होसक्ते है। या विद्यार्थी व गृहस्थ, आदि होसक्ते है। मैं समझ गया । और कोई उपाय है ? शिक्षक-तत्वोंके समझनेका एक और उपाय है। सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव, अल्पबहुत्व । इन आठ बातोंसे भी हम वर्णन कर सक्ते है ।* (१) किसी वस्तुको सिद्ध करना कि वह है यह सत् (existence ) है। (२) उसकी गिनती बचाना व उसके भेदोको बताना संख्या ( number) है। (३) वर्तमानकालमे उसके रहनेका ठिकाना बताना-क्षेत्र ( present place) है। (४) कहांतक वह वस्तु स्पर्श कर सक्ती है या जासक्ती है। बताना स्पर्शन (extent of going) है। (५) उस वस्तु के ठहरनेकी मर्यादा बताना काल (duration) है। * सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ॥ १ ॥ त० सु० - -
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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