SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्वज्ञानका साधन। { ७३ लिखी छः बातें समझं तथा दूसरोंको बतानेके लिये इन्हें समझावें । वे छः बातेx ये है-- १ निर्देश, या स्वरूप कहना (definition) २ स्वामित्व या मालिक बताना ( ownership ), ३ साधन या उसकी उत्पत्तिका कारण बताना (cause), ४ अधिकरण या आधार (support) बताना, ५ स्थिति या कालकी मर्यादा (duration) बताना, ६ विधान या भेद (kinds) बताना । तत्वोंके जाननेका यह एक अच्छा कायदा है। किसी भी विषयपर व्याख्यान करना हो तो हम इन छ• वातोंको सोचकर व्याख्यान ठीकर बनासक्ते है। जैसे अहिंसा पर कहना हो तो हम पहले निर्देश करें कि प्रमाद सहित मन, वचन, कायकी प्रवृत्ति रोककर जहां पूर्ण शातभाव हो वह अहिंसा है। अहिसाका स्वामी विचारवान मानव होता है। अहिसाका साधन देखकर चलना, रखना, उठाना, काम करना आदि है। अहिंसाका आधार सब जगहपर है, जहापर भी हम काम कर, हमें दयाभावसे काम करना चाहिये । अहिंसाकी स्थिति यह है कि हमें हरवक्त अहिंसाका ध्यान जबतक हम कोई काम करते हों रखना चाहिये । अहिमाके मेंढ दो हे--एक स्वअहिंसा, एक परअहिसा। अपने आपको क्रोधादिसे बचाना स्वअहिसा है। परकी रक्षा करना परअहिंसा है। इसीतरह हम यदि सम्यग्दर्शनके ऊपर समझा। तो कहेंगे कि तत्वोंका श्रद्धान करना निर्देश है, सम्यग्दर्शनके स्वामी सब ही मन सहित पंचेन्द्रिय जीव होसक्ते है, सम्यग्दर्शनका साधन तत्वोंका मनन व उसके रोकनेवाले कर्मोका हटना है। सम्यग्दर्शनका आधार वह ४ निर्देषस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥७१॥ त.सू. - - -
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy