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________________ विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। हटता जाता है चमक अधिकर झलकती जाती है | जब पूर्ण मैल हट जाता है, मोना अपनी असली चमकमे चमक जाता है। यह तो आप जानते है कि जब बालक थे तब बहुत कम जानते थे अव आपका ज्ञान बहुत वढ गया है। क्या आप बताएंगे कि आपका ज्ञान कैसे बढ़ा ? शिष्य-पढ़नेसे, सुननेसे, अनुभवमे ज्ञान बढ़ गया है। शिक्षक-परन्तु आप मुझे यह वताइये कि आपके ज्ञानकी जो बढ़वारी हुई है सो यह अधिकता कहासे आकर मिली। क्या आपके अध्यापकोंने आपको दी, क्या पुस्तकोंने आपको दी ? शिष्य-मै समझता हूं कि मैने ज्ञान अध्यापकोंमे तथा पुस्तकोंसे पाया है। शिक्षक-जव अध्यापकोंने ज्ञान दिया तब जितना आपको उनसे मिला उतना ज्ञान क्या अध्यापकोंका कम होगया ? पुस्तकोंसे आपने जितना ज्ञान पाया क्या उतना ज्ञान पुस्तकोंमेसे घट गया ? क्योंकि यह नियम है कि जहा बढती होगी तो कहीं घटती भी होगी। जैसे आपको कोई सौ रुपये दे तो सौ रुपये देनेवालेके पाससे जरूर कम होजायंगे। शिष्य-मै समझता हूं कि मेरे पढ़ानेवालोंका ज्ञान भी घटा नहीं न पुस्तकोंका ज्ञान घटा, किन्तु मेरा बढ़ जरूर गया है। शिक्षक-तब यह वढती अवश्य किसी बाहरकी वस्तुसे आपके पास नहीं आई किन्तु आपके पास ही इस ज्ञानकी उन्नति हुई है। जितना२ अज्ञान मिटता गया आपका ज्ञान विकसित होता गया। यदि पूर्ण ज्ञानकी शक्ति न होती तो ज्ञानका प्रकाश नहीं होता।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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