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________________ जैन और बौद्ध धर्म। [.४३ शिक्षक-जो बौद्ध भिक्षु म्वयं मांसाहार नहीं करते है वे तो मांसाहारके त्यागका उपदेश देने है । परन्तु जो स्वयं खाने है उनसे ऐसा उपदेश हो ही नहीं सक्ता है। वे अपने कृत्यकी पुष्टि करते है कि गौतम बुद्धने मांस खानेकी मनाई नहीं की है- केवल प्राणातिधातकी मनाई की है व गौतमबुद्धने स्वयं मांस स्वीकार किया है। पालीनत्र सीलोनमें रचे गए थे, समुद्रका मध्य द्वीप होनेसे यहांके निवासी मछली खाते है। इसलिये सत्रोंके लिखनेवालोंने दो तीन सूत्रोंमें ऐसा झलका दिया है कि गौतम बुद्धने स्वयं मांस लिया व मांसका निषेध नहीं किया है। इन सूत्रोंका आधार लेकर वे मांसाहारी साधु अपने मनको समझा लेते है और मांसाहारको स्वयं भी नहीं छोडने हे और न दूसरोंसे छुड़वाते हे। लंकावतार सूत्रमे तो बिलकुल स्पष्ट कहा है कि जो कहने है कि गौतमबुद्धने मांस खाया व मांस खानेकी प्रेरणा की है वे बौद्ध शासनकी अवज्ञा करते हे । वहा कहा है " भविष्यनि अनागतेऽध्वनि ममैव शासने प्रवजित्वा शश्य पुत्रीयत्वं प्रति जानाना रस तृष्णा यवमिता तां तां मांसभक्षणहेत्वाभामां ग्रन्थयिष्यन्ति मम च अभूताख्यानं दातत्पं मन्स्यन्ते तत्तदर्थोत्पत्ति निदानं पलायित्वा वक्ष्यन्ति इयं अर्थात्पत्तिररिमन्निटानं भगवता मांसं भोजन मनुणतं क्लामिनि, प्रणीत भोजनेषु चोक्तं स्वयं च किल तथागतेन परिमुक्तिमिति-न च महामने कुत्रचित मूत्र प्रतिमेवितव्यमित्युनुनातं प्रणीतभोजनेषु वा देशिनं कल्प्यमिति ।" भावार्य-मेरे ही गासनमे भविष्यमे शाक्य संप्रदायी ऐसे साधु होंगे जो मांसरसकी तृष्णाके कारण मामाहाकी पुष्टिमे मिया
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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