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________________ जैन और बौद्ध धर्म। [२२३ व इन्होंने जगतकी यात्रा की थी व भारतमें भी आए थे। फिर लौटकर दक्षिण इटलीके क्रोटोना नगरमे स्थिर रहे । वहांका राजा नूमा पोम्पिलियस उनका शिष्य हुआ है। लेटिन भाषाका कवि ओविद सन् १८ मे हुआ है। उसने इस पिथागुम्का चरित्र व उनकी शिक्षाएं Tulamorphores नामकी पुस्तकमें दी गई है यह (Samiun suge ) समियाके साधु प्रसिद्ध थे। एक व्याख्यानका इंग्रेजी में उल्था इस जैनगजटमें दिया हुआ है जो पिथागुरुने इटलीके राजा नूमाको दिया था। उसके पढ़नेसे इसमें संदेह नहीं रह जाता कि उनका तत्वज्ञान वही था जो जैनोका था। इसके कुछ वाक्य नीचे दिये जाते है । बहुत संभव है कि यह पियागुरु ही पिहितास्रव मुनि हों। (१) मरनेपर शरीर नष्ट होजायगा परन्तु आत्माएं कभी नहीं मर सक्तो है। आत्माओको पुराना घर छोडकर नए घरोंमें जाना पड़ता है। (२) सर्व वस्तुएं परिणमनगील है, किसीका सर्वथा नाश नहीं होता हैं All tihunya chaye, there is no death anywhere आत्मा पशुमे मानव व मानवसे पशु हो जाता है । यह कभी मरता नहीं। जैसे मोम भिन्नर शकलोमें बदला जासक्ता है । तथापि वह उतना ही मोम बना रहता है। इसी तरह आत्मा भिन्नर पर्याओंमें भिन्नर शकलोंको रखता हुआ सदा वही बना रहता है। नोट-इन वाक्योंसे साफ प्रगट है कि पिथागुरु द्रव्यको नित्य व अनित्य मानते थे, उत्पाढव्ययध्रौव्यरूप मानते थे तथा अनेक आत्माओंको मानते थे व आत्माको एक प्रकारक अकाग्वारी होकर
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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