SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१०] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा । भा०-जिपके मोह नहीं है उसने दुखको नष्ट कर डाला। जिसके तृष्णा नहीं है उसने मोहको नष्ट किया, जिसके लोभ नहीं है उसने तृप्णाको नष्ट किया। जिसके धनादिर ममन्त्र नहीं है उसने लोभको नष्ट किया । धम्मो मंगल मुक्किट हिसा सजमा नबो । देवा वि तं नर्मसंति जस्स धम्मे सया मणे ।।५-३॥ भा०-अहिंसा, संयम तप ये धर्म उत्कृष्ट मंगल है । जिसका मन सदा धर्ममें है उसको देव भी नमन करते है। थम्मे हरए वंभे सति तित्थे अणाविले अत्तपसनलेसे । जहिसि हाओ विमलो विसुद्धो सुसीति भूओपनहामिदोस ॥२४॥४ ___ भा०-मिथ्यात्वरहित. आत्मानंदकारक धर्मरूपी द्रह और ब्रह्मचर्यरूपी शातिमय तीर्थ (नदी) है। जिसमे स्नान करनेसे यह आत्मा मलरहित शुद्ध व शात होनानी है। इसलिये मैं इसीसे आने मैलको छुडाता हूं। निम्ममो निरहंकारो निस्संगो चत्त गारवा । समो अ सबभूएस तसेसु थावरेसु य ॥ ११-५॥ भा०-साधु वही है जो ममता रहित, अहंकार रहित, बाहरी भीतरी परिग्रह रहित, वडप्पन रहित हो तथा त्रस स्थावरादि सर्व प्राणियोंपर समता भाव सहित हो । नादसणिस्स नाण, नाणेण विणा न होति चरणगुणा । अगुणिस्स नस्थि मोक्खो, नत्थि अमुक्कस्प निवाण ॥७-६॥ भा०-सम्यकदर्शन रहितके सम्यकज्ञान नहीं है । सम्यक्
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy