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________________ जैनोंके भेद | २०७ रहने हैं जैसे--वृक्षादि मिट्टी पानीको खींच लेते है । केवली वीतराग है, अनंत बनी है, उनके भूखकी इच्छाका क्लेश नहीं पैदा हो सकता है । उनके तीव्र पुण्योदयमे व लाभातराय कर्मके नाशसे उनकी योग शक्तिके द्वारा पुल पिs शरीर में मिल जाते हैं । तावर लोग कहते है कि वे साधुके समान भोजन करते है । इसमें भी मध्यस्थ भाव रखकर विचार लेना चाहिये | आहार का होना दोनो मानते है | दिगम्बरी वृक्षके लेपाहार के समान पुगलों का ग्रहण मानने है, श्वेतांबरी कवलाहार मानने हे । शिष्य-क्वा और भी अंतरकी बातें हैं 2 1 शिक्षक --तीन मुख्य अंतरकी बातें आपको बताई है । और भी कुछ बातें बताता हू । दिगंबरी मानने हे कि केवलीको रोग व नीहार (मलनत्र ) नहीं होता है । श्वेतावरी रोग व नीहार होना भी मानते है। श्री महावीर भगवानने विवाह नहीं किया - कुमारकालमें दीक्षा ली ऐसा दिगंबरी मानते हे । श्वेतावरी मानते है कि विवाह किया, कन्या जन्मी, फिर दीक्षा ली । श्री महावीर स्वामी राजा सिद्धार्थकी रानी त्रिशलाके ही गर्भ में रहकर जन्मे ऐसा दिगंबरी मानने हे । श्वेतांबरी मानते है कि यह पहले एक ब्राह्मणके गर्भ में आए फिर इन्द्रने उनको बहासे लाकर त्रिशलाके गर्भमें रक्खा । इत्यादिक अतरकी ऐसी कुछ बाते है जो कोई महत्वशाली नहीं हैं । शिष्य - दिगंबर श्वेताम्बर भेट कसे हुआ ? शिक्षक - दोनो मानते है कि ये भेट विक्रम संवत् १३४ या १३६ में पड़ा । दिगम्बर कहने है कि इताम्बर से तब स्थापित हुआ ।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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