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________________ जनोंके भेद। [ २०५ समअमें जैसा आये वैया वह बाहरी चारित्र पाले । अंतरङ्ग परिणामोंपर मुग्न्यतासे लक्ष्य देना चाहिये । शिष्य और कुछ जरूरी अंगरकी बातें बताइये । शिक्षक--दृमरी बात यह है कि दिगंबर जैन अपने शास्त्राधारसे ऐसा बनाने है कि बीके गरीर मोक्ष नहीं होमती है, पुरुषके शरीरसे ही मुक्ति होता है । इसका कारण वे यह बताते हैं कि जिस उच्च ध्यानके करनेसे कौका नाश होसके वैसा ध्यान शक्तिकी कमीसे स्त्री द्वारा नहीं किया जासक्ता है। बीके संहनन अर्थात् हड्डियोंकी शक्ति वज्रवृपमनाराच रूप नहीं है। पुरुषोंमें भी जिसके ऐसी शक्ति होगी वही मोक्षक साधनकी योग्यता रख सक्ता है । वज्रके समान हुन नसोक जाल, हड्डियोकी संधिये तथा हड्डी हो उसको वनवृषभनाराच संहनन कहते है। स्त्रिया उन्नति करके मोलह स्वर्ग तक व अवनति करके छठे नर्क तक जासक्ती है । श्वेतांबर मात्रकार स्त्रीक गरीरमे मुक्ति होना बताते है। उनके यहा उन्नीसवें तीर्थकर श्री मलिनाथको स्त्री तीर्थकर माना है । यद्यपि वे मोक्षका लाभ स्त्रीके शरीरमे मानने हे तथापि दिगंबरोके समान वे यह मानते है कि वह स्वर्गोग ऊपर ग्रैवेयिक आदिमे नहीं जाती, सातवें नर्क नहीं जाती, चक्रवती आदि नहीं होती है। श्वेताम्वर ग्रन्थ प्रवचनसारोद्धार प्रकरणरत्नाकर भाग तीजा मंवत १९३४ छपा भीमसी माणक बम्बईमें कहा है अरहंत चक्कि केसव बल संभिन्नेय चारणे पुव्वा । गणहर पुलाय आहारगं च नहु भक्यि महिलाणं ॥ ५२ ।।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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