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________________ १९४ ] विद्यार्थी जनधर्म शिक्षा । बहुत कम वनस्पतिका व्यवहार करता है। इसको सचिन पानी आदिम नहाने आदिका त्याग नहीं है। लोग इलायची आदि करायला पदार्थ कुटकर डालने से पानी प्राशुक होजाता है जिनसे रंग बदल जाये | (3) रात्रिभोजन त्याग प्रतिमा- पिछली व क्रियाओको पालता हुआ गत्रिको न तो स्वयं किसी प्रकारका भोजनपान को न दूसरों को करावे | यह श्रावक बहुत मनोपी होजाता है। रात्रिको गृहके कुटुम्बियों की सम्हाल दूसरोंके आधीन कर देना है। आप अधिकतर धर्मध्यानमें गत्रिका समय विताता है, भोजनानिकी चचां भी नहीं करता है। (७) ब्रह्मचर्य प्रतिमा- पिछली मब क्रियाओंको पालना हुआ अपनी श्रीका भी राग छोडदेवें । घरमे रहे तो एकांत में सोधे, उदासीन वैराग्ययुक्त वस्त्र पहरे । यदि घर त्यागे तो उदासीन श्रावके रूपमें भ्रमण करके देशाटन करे -धर्मप्रचार करे | यह माया रख मक्ता है. सवारीपर चढ़ सक्ता है, अपने हाथसे भोजनपानका प्रबन्ध कर सक्ता है, निमंत्रण पानेपर भक्तिसहित दान दिये जानेपर ग्रहण करसक्ता है । I (८) आरंभ त्याग प्रतिमा- पिछली यत्र क्रियाओं को पालता हुआ खनी व्यापारादि रसोई, पानी आढिका सब आरम्भ छोडदे, संतोषमे रहे । घरमे रहे तो घरवाले जब भोजनको बुलावे नोपमे जीमले धार्मिक आरम्भ करमत्ता है। ध्यानका अधिक अभ्यास करता है। (९) परिग्रह त्याग प्रतिपा - पिछली सब क्रियाओं को करता हुआ अपनी जायदादको जिसको देना हो ढेढे या दानमे लगादे, आप रुपया पैसा सब त्यागदे, कुछ वस्त्र व एक दो वर्तन रखले. घर छोड़कर देशाटन करे या एकातमे बाग या नमियामे रहे । निमंत्रण पाने र भोजन करले |
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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