SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवीतरागाय नमई विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। সুস্থজ্ঞ ঞ্জাজ্ব । मैं कौन है? प्रश्न- आपका धर्म क्या है ? उत्तर-मै जैनधर्मी कहलाता हूं। मेरे घरमे सब जैनधर्म पालते है। प्र०-क्या आप कुछ जैनधर्मको जानते हो? उ-मैं तो कुछ भी नहीं जानता हूं। क्योकि मेरी माताने मुझे गिशुपनमे कुछ बताया नीं। पिताजीने सारी स्कूल मे भेज दिया। पिताजीने कभी शिक्षा नहीं दी, न दिलानेकी चेष्टा की। प्र०-क्या आपकी इच्छा है कि आप जैनधर्मको जाने ? उ०-मैं नो कालेजमे पढ । हूं। मेरे मनमे तो मुझ धर्मकी ही जरूरत नहीं मालम पडती है। मुझे किसी भी धर्मके जाननेकी ज़रूरत नहीं दीखती तब मैं जैन मैको जानकर क्या कगा। प्र०-क्या आप बता सकेंगे कि आप कौन है ? उ०-मैं मनुष्य हूं, विद्यार्थी है और मै अपनको जैा भी कह देता हूं। प्र०-आप यह बतावें कि मुढें और जिन्दे मानवमे क्या फर्क है, जब दोनोंका शरीर एकसा दीखता है। मुर्दा समझता क्यो नहीं ?
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy