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________________ १५६] विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। काल पकनेको लगता है। इस बीचके कालको आवाधा काल कहतं है। इसका दृष्टात ऐसा ही समझ लिया आवे जैसे-रवेतमें बोए हा आमको कुछ काल पकनेमे लगता है । इस आवाधा कालका हिमात्र यह है कि यदि एक कोडाकोडी मागरकी स्थिति पडे तो आवाधाकाल १०० वर्षका होता है । सत्तर कोडा कोडी सागरकी स्थिति हो तो ७००० वर्ष आवाधा काल होगा । इसीका औसत हिसाब निकाला जाय तो एक करोड सागरकी स्थितिके लिये आवाधा काल मात्र एक अन्तर्मुहर्त के लिये ही होगा । इसके आप यह बात जान सक्ते है कि जितने कम स्थितिके कर्म बन्धेगे वे जल्दी फल देनेको तैयार होजायगे । इससे यह बात आप समझ लेवें कि कर्म इम जन्मके बांये हुए भी इस जन्ममे उदय आने लगते है। दूसरी बात यह जाननी चाहिये कि आवाधा कालको निकाल कर जितने कर्मोकी जितनी स्थिति वाकी रहती है, उसमे कर्मपुद्गल प्रति समयके हिसावसे बंट जाने हे। पहले२ अधिक कर्म अडते है फिर कम कम होते हुए अतिम समयमे सबसे कम अडने है । इस अधिक व कम कर्मोके झडनेका एक दृष्टान्त आपको देते है जिससे आप समझ लेंगे। जैसे किसी जीवने ६३०० कर्म ४९ समयकी स्थितिवाले बाधे और १ समय उसका आवाधाकाल रक्खा जाये तो ४८ समयमे वे किस तरह अडेंगे उसका हिसाव नीचेके नकोसे समझमे आयगा । इसका विशेष खुलासा श्री गोमटसार कर्मकाउसे जानना योग्य है
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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