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________________ १३० विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। भीतर भी असलमे होते है क्योंकि एकजीव लोकाकाश भरमे फैल -सक्ता है । कालाणु भिन्न २ एक एक प्रदेशपर है इसलिये काला'णुओंकी गणना असंख्यात है । आकाश अनन्त है इससे उसके अनन्त प्रदेश कहलाएंगे । पुद्गल यद्यपि तीन लोकमें परमाणु व स्कंथके रूपमे फैले हे तथापि परमाणुओंके मिलनेस जो स्कंध बनने है वे तीन प्रकारके होते है--किन्हीं स्कंधोंकी रचना संख्यात परमाणुओंसे होती है, किन्हींकी असंख्यात परमाणुओंसे तथा किन्हींकी उनसे भी अनंत परमाणुओंसे होती है । इसलिये पुद्गलके स्कंधोंके प्रदेश संख्यात, असख्यात तथा अनंत ऐसे तीन तरहके कहलाते है। न्यहा प्रदेशसे मतलब परमाणुका लेना चाहिये । ____ कालाणु असंख्यात है वे कभी एक दूसरेसे मिलते नहीं है, वे अलग २ एक एक ही प्रदेशको घेरते है । शेष पाच द्रव्य एक प्रदेशसे अधिक स्थान घेरते है । इसलिये जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा आकाशको अस्ति काय या पंचास्तिकाय कहते है। शिष्य-परन्तु पुद्गलका एक परमाणु तो एक ही प्रदेश घेरता है उसको काय तो नहीं कहना चाहिये । शिक्षक-यद्यपि परमाणु एक ही प्रदेश घेरता है परन्तु उसमें परस्पर मिलनेकी शक्ति है जब कि कालाणुमे परस्पर मिलनेकी शक्ति नहीं है इसलिये परमाणुको शक्तिकी अपेक्षा काय कहते है। एक बात और जानना चाहिये कि छहों द्रव्यमे दो प्रकारके गुण होते है--सामान्य (geveral ) विशेष (special )-विशेष गुण तो हम बता चुके है, सामान्य गुणोंको समझ लीजिये।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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