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________________ अजीव तत्व। [१२७ घीमें अधिक चिकनई होती है वैसे परमाणुओंके भीतर चिकनईके अनेक भेद होते है, कोई कम चिकना कोई अधिक चिकना होता है। इसी तरह जैसे धूल, वाल, व कंकडमें रूखापना अधिकर है, वैसे परमाणुओंमे रूखापना किसीमे कम व किमीमें अधिक होता है। नियम यह है- मखा परमाणु रुखसे व चिकना चिकनेसे तथा रूखा चिकनेसे बन्ध सक्ता है, यदि परस्पर दो अंगका अंतर हो। इससे कम व अधिक अंतर होनेपर वन्ध न होगा इसी तरह जिस परमाणुमे सबसे कम चीकनापना या रूखापना होगा वह परमाणु किसीमे ही बंधेगा परन्तु बाहरी निमित्तोंसे यदि उसीमें अंश बढ़ जायेंगे तो वह बन्ध हो सकेगा। जैसे एक परमाणुमें ५० अंश चिकनाई है तो वह ५२ अंशवाले चिकने, या रूखे परमाणुसे ही बंधेगा। ५३ अंशवाले या ५२ अंगवालेसे नहीं बंवेगा । एक परमाणु से रूखापना ५५ अंग है तो वह ५७ अंगवाले चिकने या रूग्वे परमाणुसे वन्ध जायगा। ५४ या ५८ अंशवालेसे नहीं बन्धेगे । जब परमाणु परस्पर बन्धकर एक पिंड या स्कंध बन जाते है तब जिस परमाणुमें अधिक अंश होंगे वह कम अंशवालेको अपने रूप कर लेगा। जैसे १५ अंशवाला परमाणु चिकना है तथा १७ अंशवाला परमाणु रूखा है तब दोनोंका बना हुआ पिंड रूखा होजायगा। इनमें ऐसी शक्ति है कि अधिक अंशवाला अपने रूप दूसरे परमाणुको कर लेता है। शिष्य-क्या इसका प्रयोग करके आजकल किसीने देखा है ? शिक्षक-यह जिन शास्त्रकी लिखित बात है। जहातक हमें मालम है अभीतक किमीने प्रयोग करके नहीं देखा है। जो जैन छात्र विज्ञानके ऊंचे ज्ञाता हों उनको इसका प्रयोग करके जांचना चाहिये।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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