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________________ १०४] विद्यार्थी जनधर्म शिक्षा। इस श्रेणीवाला मन सहित पंचेंद्रिय जब गुरु व शास्त्र द्वारा सात तत्वोंपर विश्वास लाता है-आत्माको यथार्थ जानता है, बारवार आत्माका मनन करता है तब इसके ये पाचों ही कर्म मिथ्यात्व और अनतानुबंधी कपाय उपशम होजाने है. अंतर्महर्नके लिये दब जाते हे तब उपशम सम्यग्दर्शन पैदा होजाता है । ४८ मिनटमे कमको अतर्मुहूर्त कहने हे । तब पहले गुणस्थानसे इकटम चौथ अविरत सम्यग्दर्शनमे आजाता है । यहा आकर मिथ्यात्व कर्मके तीन विभाग होजाते है। मिथ्यात्व, सम्यक्तमिथ्यात्व या मिश्र और सम्यक्त प्रकृति कर्म । अतर्मुहर्त पीछे यदि अनतानुबंधी कपायका उदय आजाता है तो दूसरे गणस्थानमे गिर पडता है। यदि मिश्रका उदय आजाता है तो चौथेसे तीसरेमें आजाता है। यदि तीसरे सम्यक्त कर्मका उदय होजाता है तो उपशममे क्षयोपशम नम्यदर्शन होजाता है। जो कुछ मलीन होता है तब गुणस्थान चौथा ही बना रहता है। २--सासादन--यह गुणस्थान चौथेने गिरकरके ही बहुत थोडे कालके लिये होता है। जैसे वृक्षसे फल भृमिपर गिरे। वीचमें बहुत थोडा काल लगता है। जिसको आंधकामे अधिक छ आवली कहते है। यहांसे तुर्त नियमसे पहले गुणस्थानमे आजाता है। यहा मिथ्यात्वका उदय नहीं होता है किन्तु अनतानुबंधी कपायका उदय होता है। इस दरजेसे कोई ऊपर नहीं चढ़ सक्ता है। ३--मिश्र--यहा मिश्र दर्शनमोहनीयका उदय होता है, अनंतानुबंधी कषायका उदय नहीं होता है। यहा सच्चे झूठे मिले हुए श्रद्धान होते है। ४--अविरत सम्यग्दर्शन--यहा सच्चा तत्वोंका श्रद्धान, सच्चे
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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