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________________ तत्वज्ञानका साधन। [८९ स्वरूप नहीं है वह रामचंद्र है, लक्ष्मणसिह नहीं है दुर्गासिह नहीं है। चौकी नहीं है । कुरसी नहीं है, आकाश नहीं है। इसलिये पदार्थ भाव अभाव दोनों रूप है। जीवमें जीवपना है पुद्गलपना नहीं, आकागपना नहीं; पुद्गलमें पुद्गलपना है जीवपना नहीं, आकागपना नहीं । इन भाव अभाव म्वभावोंके भी नीचे प्रमाण सात भंग होंगे (१) स्यात् भाव (२) स्यात् अभाव (३) म्यात् अवक्तव्य. (४) स्यात् भावः अभाव (५) स्यात् भाव. अवक्तव्यः (६) स्यात् अभाव. अवक्तव्य. (७) स्यात् भाव. अभाव अवक्तव्यः । ___ यह संसारी आत्मा शुद्ध भी है अशुद्ध भी है। यदि मूल स्वभावकी अपक्षासे विचार किया जाये तब तो यह शुद्ध है, किन्तु कर्मोके बंध व रागद्वेषादि भावांकी अपेक्षा विचार किया जाय तो यह अशुद्ध है। यदि एकातमे एक ही बात माने तो कभी भी जीव शुद्ध नहीं होसक्ता। यह वात हम पहले भी मैले कपडाका दृष्टात देकर बता चुके है। इसीको सात भंगरूप कहेंगे जिसमे गिप्य समझ जावे । (१) स्यात् शुद्धः (२) रयात् अशुद्ध. (३) स्यात् अवक्तव्यः (४) रयात् शुद्ध अशुद्धः (५) स्थात् शुद्धः अवक्तव्य. (६) स्यात् अशुद्ध अवक्तव्यः (७) स्यात् शुद्ध अशुद्ध. अवक्तव्यः । शिप्य-बहुत ही बढ़िया तरीका है। मैने एक दफे किसी अपने सहपाठीको कहते सुना था कि शंकराचार्यने जैनियोंके स्याद्वादका खूब खंडन किया है। शिक्षक-मैं समझता हूं कि शंकराचार्यजीने या तो अच्छी तरह समझनेका उद्यम न किया होगा या उस समयकी पद्धतिके अनुसार जानबूझकर दोष बताया होगा। क्योंकि उस समयमे जैनोंके साथ
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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