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________________ ८४] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा है। इस मूर्तिका सम्मान या अपमान उसीका मन्मान या अपमान समझा जाता है जिसकी वह मूर्ति है। किसी भी वस्तुमे विना वैसे आकारके किसीका मानना अनादाकार स्थापना है। जैसे भूगोलमे कलकनेक नकामे कलकी को गंगा नदी मान लेना। किसी दूसरी लकीरको रेलगाडीका मार्ग मान लेना। किसी तीसरी लकीरको हरिसन रोड मान लेना । जगतमें इन दोनों प्रकारकी स्थापनाकी जरूरत पड़ती है। मकान बनानेके पहले नकसा खींचना पड़ता है। मृतक प्राणियोंके चित्रों ने उनकी यादगार बनी रहती है। (३) द्रव्य निक्षेप-जो अवस्था भूतकालमे श्री व भविप्यमें होनेवाली है उसको वर्तमानमे उस पढार्थमे व्यवहार करना मो द्रव्य निक्षेप है । जैसे कोई जज था अब जजी नहीं करता है. पेन्गनपर है. तौभी उसको जज कहना या कोई मॅजिस्ट्रेट होनेवाला तो भी पहलेसे ही उस मजिस्ट्रेट कहना। (४) भाव निक्षेप-वर्तमान अवस्था जिस पदार्थकी जैसी हो उसको वैसा कहना । जैसे राज्य करते हुएको राजा कहना, वैद्यकका काम करते हुयेको वैद्य कहना। शिप्य- वास्तवमे ये निक्षेप भी बहुत जरी मालम पडने है । कृपा करके बताइये कि निरंप और नयमे क्या अंतर है। शिक्षक-नय तो उस ज्ञानको कहते हैं जो पढार्थके एक अंगी स्वरूपको जानता है । निक्षेप उस पदार्थको कहते है जिसको नयमे जाना जाता है। जैसे एवंभूत च नसूत्र नयमे भाव निक्षेपक्षी जानेंगे नैगमनबसे न्यनिक्षेपको जानेंग। समभिल्ढ़ नयसे
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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