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चौबी.. १६ अथ श्री शान्तनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥ : पजन
(बखतावरसिंहकृत) रोडक छंद। ५३१ स्थापना-सारथ सु विमान त्याग गजपुर में आये । विश्वसेन भूपाल तास के नंद कहाये ॥
पंचम चक्री भये दर्प द्वादश में राजे। मैं सेवं तुम चरण तिष्ठिये ज्यों दुःख भाजे ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्रावतराऽवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम् ।
..... अथ अष्टक । कोशमालती छंद। ....... जल-पंचम उदधि तनो जल निरमल कंचन कलश भरे हरषाय । धार देत ही श्रीजिन सन्मुख जन्म
जरामृत दूर भगाय ॥ शांतिनाथ पंचम चक्रेश्वर द्वादश मदन तनो पद पाय । तिन के चरण, कमल के पूजे रोग शोक दुःख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, | — ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरा रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-मलयागिर चंदन कदली नंदन कुंकुम जल के संग घसाय । भव आताप विनाशन कारण चर चूं