SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और गण ईश पचात प्रकाश करे ॥ ६॥ चरचा नव तत्त्वतनी सुकही अणु ब्रत महा व्रत सर्व सही । पूजन . · दश धर्म तने सब भेद कहे, अनुयोग सुने भव शर्मलहे ॥७॥ इन आदिक भेद सुनो सब ही, संग्रह कितने इक योग लियो तब ही। शुभ केतक श्रावक धर्म गहो, बहुतेयक सम्यकसार लहो ॥८॥ फिर आरज देश बिहार करों, भवि बोध भवोदधिपार धरो। एक मास तनी जद आयु रही, अवनी सम्मेद तनीजु गही ॥९॥ तहां योग निरोध के मोक्ष गये, सुख लोन महा प्रभु आप भये । तुम ही सब बिघ्न बिनाशक हो, दुःख जन्म जरा मृत नाशक हो ॥ १०॥ तुम नाम अधार हिये ममरो, जिन पार करो मत देर धरो । बखता रतना इम अर्ज करी, न विलंब करो प्रभु एक घरी ॥११॥ धत्ताछन्द-यह मंगल माला दुःख सब टाला, सुख संपत छिन में बरनी। सब के मानन को गुण जानन को अष्टम छित में यह धरनी ॥ १२॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये महऽर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । दोहा-श्री अनंत जिनदेव को, जो पजे चितलाय । पुत्र मित्र धन धान्य यश, तिन घर सदा रहाय ॥ १३ ॥ इत्याशीर्वादः ।। इति श्रीअनंतनाथ जिन पूजा संपूर्णी ॥ १४ ॥
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy