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________________ तपज्ञान निर्वाण पंच कल्याण प्राप्तेभ्यो मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६॥ पूजन | धूप-दशगंध सुलायो धूप बनायो अगर वह्नि में खेवत हूं,तिस धूप उडाए अलिगण छाये कर्म नसाये संग्रह . सेवत हूँ । चौबीस जिनंदा आनंद कंदा, हरि नित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्या। मंगल - गावें, तुर बजावें भवहारी। ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महाबीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यो गर्भ, - जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तभ्योऽष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वामीति स्वाहा।। ७॥ पल-फल पक्क मनोहर प्रासुक लायो दाडिम आदिक भरथारी, रसना को प्यारे नयन निहारे शिवपुर दीजे सुखकारी। चौबीस जिनंदा आनंद कंदा, हरिनित बंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावे मंगल गावें, तूर वजावें भवहारी ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनेन्द्रभ्यो - गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तभ्यो मोक्ष फल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ-श्रीफलादि वसुद्रव्य सवारे अर्घ सुकर में में लीना, संसार विनाशी शिवपुर वासी यातें तुम पद चर चीना । चौवीस जिनंदा आनंद कंदा, हरि नितबंदा सुखकारी, भविजन नित ध्यावें - मंगल गावें तुर बजावें भव हारी। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विशिति जिनेन्द्रेभ्यो गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्तेभ्योऽध निर्वपामीति स्वाहा ॥ जयमाला। दोहा।। महाअर्घ-अलख लखावन तुम गिरा,भव भयभंजन धीर । वरन शुभ गुण मालिका,हरोभृत्यकी पीर । % 3D
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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