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पत्ताछन्द
... .. बचौ० | देव, सुलोक अलोक तने लख भेव ॥ ११॥ नम सिर नाय उभय कर जोर, प्रभु हमरे वह फंदन तोर। पूजन | लई चरनांबुज शर्न जिनेश, करो मतं ढील सुमेट कलेश ॥१२॥ घत्ताछन्द-जैजै रिपुनाशन ज्ञान प्रकाशन श्रीसुपार्श्वदेमोक्षधरा, जो गुण गण गावें शीस नवावेंपर्ने
पढावें हर्ष बरा ॥ १३॥ ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथ जिनेंद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण
पंच कल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽ निर्वामीति स्वाहा॥ अथ आशीर्वादः।छंदरोडक-श्रीसुपार्श्व जिनतने चरणजे भविजन ध्यावें,पाठ पढ़ें चितलाय तथा सुनके हरषावें ॥ तिनघर मंगलहोयरिद्धि व्यापे अधिकाई,बखतावर इम कहे रतन सुन चित्त लगाई ॥१४॥
. ॥इत्याशीर्बादः।। इतिश्री सुपार्श्वनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥७॥