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"पजन संग्रह
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७ अथ श्रीसुपार्श्वनाथ जिन पूजा लिख्यते।
(वखतावरसिंहकृत) छप्पैछंद । स्थापना-नगर बनारस मांहि जन्म जिनवर ने लीना । पृथ्वी देवी मात जयो जिन नंद प्रवीना ॥
हरित वरण तनतुंग लसे दोसे छवि छाजे। पिताराय सुप्रतिष्ठ तासके सदन बिराजे॥ . है महिमाऽनंतमहंत तुम,थापूं मैं सिर नायके।हूजे दयाल मम हालपे, तिष्ठो प्रभु इतआय के॥ - ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् ।
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठः स्थापनम् । - ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम्॥
अथ अष्टक । (चाल अठाई पूजा की।) जल-शुभ द्रहको निर्मल वारि प्राशुक सुख कारी । तुम चरणन आगे धार कंचन भर झारी ।
श्रीदेव सुपारसनाथ तुम गुण गावत हूं, मुझ कीजे आप सनाथ यातें ध्यावत हूं। - ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म
मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।