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६ अथ श्री पद्मप्रभनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते। .. .... (बखतावरसिंह कृत) छन्द योगीरासा।. .. स्थापना-नगर कुसभी अद्भुत राजे धनपति आय बनाई। ऊरध ग्रीवक त चयआये,रक्त वरण छविछाई। धरनतात विख्यात जगतमें मात सुसीमा जानो।थातुम को हरष धारकर तिष्ठ तिष्ठ दुख भानो॥१॥
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम् । . ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॥ ॐ ह्रीश्रीपमप्रभ जिनेंद्र अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधीकरणम्।
अथ अष्टक । गीता छंद ॥ . जल-शुभकुंभकनक मय वारि उज्ज्वलतासमेंभरलेत हूं। यह तृषा आतुर नाशनेको धार सन्मुख देतहूं।
श्रीपद्मप्रभ पद कंज लक्षण अरुण वरण सुहातहैं। पूजें अटल पद हेतु स्वामी कलुषताप नशात हैं। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेद्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्य
जरा रोग विनाशनाय जलं निवपामीति स्वाहा॥ .... चंदन-गोसीर घसकेसर मिलाऊंसरस शोभा देत हैं। तुम चरन चर्चन हेत लायो महक षट्पद लेत हैं।