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________________ ॐ नमः सिद्धेभ्यः। चौबी० चौथी . . ... . जन अथवर्त्तमानचतुर्विंशतिजिनपूजालिख्यते। ४३७ (बखतावरसिंह कृत) मंगलाचरणम्। दोहा-बंदूं मैं शिर नाय के, चौबीसों जिनचंद । पाप तिमिर नाशक सुरवि, पूरण परमानंद ॥१॥ .पांचों पद हृदये धरूं, शारद मात मनाय । देह बुद्धि मोको अबै, रचू पाठ सुखदाय ॥२॥ छन्द पायता। तुम हो जग के हितकारी, तुम जैन यती व्रतधारी। तुम पूजें सुरगण सारे,गणधर गुण वरनत हारे॥३॥ तुमनंत चतुष्टय स्वामी, जानत जग अंतर्यामी । तुम शुद्ध बुद्ध दातारा, सब तत्व प्रकाशन हारा ॥ ४॥ तुम प्रातहार्य वसुधारे,भवि पूजत चरण तिहारे । सिंहासन अति छबि छाजे, सुर दुंदुभि नभ में बाज॥५ शिर छत्र तीन सुख कारे, त्रिभुवनपत सूचन हारे । जब चौसठ चमर दुराई, गंगा मनु सेवन आई ॥६॥ वपुतनी प्रभा अति सोहे,भवसात भवांतर जोहै । अशोक वृक्ष अति राजे,तिस देखत शोक जु भाज॥७॥
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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