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चावा० गये। करत तपस्या घोर वर्ष इक यूं गयो,चारों कर्म नशाय ज्ञान केवल लयो ॥६॥ समवसरन के माहिं पूजन | सकल रचना रची, आये सब सुर वृन्द सु जय जय धुन मचा । करें इंद्र तुम स्तुती पूज रचाय के, दोष संग्रह अठारह रहित सुबरने गायके ॥ ७॥ गुण छालिस तुम माह बिराजे देवजी, तितालिस गण ईशकरें
तुम सेवजी। भव्य जीव निस्तारन को तुमने सही, करो बिहार महान आर्य देशन कही ॥८॥ अंग बंग पंचाल मिसर. गुतरातजी, काशी कौशल मगध देश विख्यात जी। देकर बहु उपदेश जीव तारे घने, गिरि सम्मेद 4 आय अघाती सब हने ॥९॥ भये सिद्ध महाराज अष्टगुणमयसदा, फेर नहीं इस मांहि जिना आवन कदा। जो यह मंगल पोठ तुमारो चितधरे, सिंह चोर जलसर्प उपद्रव सब : टरे ॥१०॥ करूं बीनती आपतनी निज काजजी,तुम ही बडे दयालु सुनो जिनराजजी। वखतावर अर रतन नमें शिर नायके, कीजे मम कल्याण टेर सुन आयके ॥११॥
पत्ता छन्द-यह वर गुण माला धर्म रसाला कंठ माह जे धरें त्रिकाल । शुभज्ञान बढावें : नसावें शिवपुर को पावें दरहाल ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ न. पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पदप्राप्तये महाघ निवपामी . अथ आशीर्वादः । वसंत तिलका . 'रिद्धि-भारी।