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________________ संग्रह चौबी० धूप-सर सुगंध धनंजय लहकती, खेय हूं दशगंध सु महकती। पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म पूजन जिनवर धर्म दयालजी॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५२८ फल-जायफल लौंगादिक कर लिये, थाल भर तुम आगे धर दिये । पूज हूं तुम चरण रिसालजी, __ धर्म जिनवर धर्म दयालजी ॥ ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण . पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्षफल प्राप्तये कलंनिर्वपामीति स्वाहा॥ अर्घ-जल फलादिक मिष्ट मिलायके, करूं अर्घ सु तुम गुण गायके । पूज हूं तुम चरण रिसालजी, धर्म जिनवर धर्म दयालजी ॥ ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंच ... कल्याण प्राप्ताय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ अथ पंच कल्याणक । दोहा। गर्भ-अंधियारी वैशाख की, तेरस तिथी सुजान। मात सुव्रता गर्भ में, पुष्पोत्तर तज आन ॥ ह्रींश्रीधर्मनाथ जिनेंद्रायवैशाखकृष्ण त्रयोदशी गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ जन्म-माघ शुकल तेरस विषे, दश अतिशय धरमेश । जनमे हरि सुर गिरिजजे, हम पूजें हरषेश ॥ . ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्रायमाघ शुक्लात्रयोदशी जन्मकल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीतिस्वाहा ॥ तप-श्वेत माघ तेरस भली, योग धरो बन जाय । मन पर्ययलह ज्ञान जिन आतम ..
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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