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चौबी०
संग्रह ५२३.
ही॥श्री नंतजिनवर छबि सुतेरी, देखते नारों अरी । सब इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद
सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाणपंचकल्याण पूजन प्राप्ताय अनर्घपदप्राप्तये अर्घनिर्वपामीतिस्वाहा ॥
अथ पंचकल्याणक । छंद त्रोटक। गर्भ-कलि कातिक एकम को गिनियें, गरभागम के दिन को भनिये। तज बारम स्वर्ग जिनंद सही,
जननी पद सेव शची जु गही ॥ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय, कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा गर्भ
कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥ ... जन्म-जन्में त्रय ज्ञान लिये जिनजी,अलि जेठ दुवादशि के दिनजी। तिहुलोक विषे जयकार भयो,हरि
सेन नरेन्द्र सुदान दियो ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी जन्म कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ तप-जिन भावत द्वादश भावन को, करमादिक रोग उडावन को। तम द्वादश जेठ सु कानन में, जिन
जाय लगे निज ध्यानन में ॥ॐह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी तपः कल्याण
प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ज्ञान-बदि मावस चैतसु ज्ञानवली, जिन पाय जु कर्म :समूह दली। शुभ तत्त्व प्रकाशक वायक हैं,