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चौवी०
पूजन
संग्रह
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चंदन-घनसार गंध घसाय चंदन, कनक थाली में धरो। तुम चरण चरचुं भाव सेती, दाह मेरी सब
हरो ॥ श्री नंतजिनवर छबि सुतेरी, देखतें नाशें अरी। इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आन पद सेवा करी॥ॐ ह्रीं श्री अनन्त नाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
संसाराताप रोग विनाशनाय चन्दननिर्वपामीति स्वाहा। अक्षत-सित फेन गंग तरंग जैसे, सार अक्षत कर लिये। पद अदाता के सुढिग में, पुंज नीके धर
दिये ॥श्री नंतजिनवर छवि सुतेरी, देखते नाशें अरी॥ इंद्र चंद्र धनेन्द्र चक्री, आनपद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ पुष्प-गेंदा गलाब अरु सेवती जूही चमेली चुन लई ।धारे चरण ढिग सुमन में पीडा मनोज तनी
गई ॥ श्री नंत जिनवर छबिसुतेरी देखतें नाशें अरी । सब इंद्र चंद्र धनेंद्र चक्री आन पद सेवा करी ॥ ॐ ह्रीं अनन्तनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय
काम वाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीतिस्वाहा ॥ नैवेद्य-पकवान नीके सरस घीके, सितारस में पक रहे। यह क्षुधारोग विनोश मेरी, चरण तेरे लग
रहे॥श्री. नंत जिनवर छबि सुतेरी देखते नाशें अरी। सब इंद्र चन्द्र धनेन्द्र चक्री, आन पद ||
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