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________________ चौबी०. ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय संसारा ताप रोग विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ .. संग्रह. अक्षत-हेजी मुक्ता सम अक्षत लिये, रजनी पति की उनहार, प्राणी। पुंज करे. अति सोहने, ते पद . ५०३ पावें अविकार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये॥ ॐह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म तप,ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अक्षय • पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पुष्प-हेजीराय बेल ले केतकी, इन आदिक सुमन अपार प्राणी। चरणन पास चढाइये, दे मदन वान निरवार प्राणी ॥ हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये । पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । • ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म,तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । नैवेद्य-हेजी व्यंजन तुरत बनायके,चरु मिष्ट मनोहर आन प्राणी । कंचन थारी में धरे,पूजत द्वै क्षुधाकी . हान प्राणी । हेजी श्रेयनाथ पद पूजिये। पूजत सब इन्द्र सुआय प्राणी श्रेयनाथ पद पूजिये । ..... ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय गर्भ,जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निवंपामीति स्वाहा । दीप-हेजी रतनन के दीपक बने,घृत पूरित जोत जगाय प्राणी। जगमग जगमग कर रहे जिन आगे
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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