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________________ पूजन .. ५८२ चौबी० पायो सब कर्महान । तहां सिद्ध भये निर्भय निरास, सो सोहत है अद्भुत निवास ॥ १९ ॥ तुमरो ही मारग भव्य पाय, सो उतरेंगे भवपार जाय । अबलो तुमरो तीरथ जिनंद, सो बर्तत है आनंद संग्रह | कंद ॥२०॥ हम याचत है तुम पैदयाल, दुख दारिदटार करो निहाल । बखतावर रतन कहै वनाय, शिव सख दीजे महावीर राय ॥ २१ ॥ .. घत्ता छन्द-जय त्रिशिला प्यारे जग उजियारे भवि गण तारे मोक्ष दई। लख चरण तुम्हारे रविशशि हारे पूजन हारे शर्म लई ॥ २२॥ ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महाऽर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अथ आशीर्वादः दोहा-बीर महाअतिबीरजी,सन्मतिवर्द्ध सुजान।पंचनाम पूजें सदा,पावें पदनिर्वान ॥ .' इत्याशीर्वादः । इति श्रीमहाबीर जिन पूजा संपूर्णा ॥ २४ ॥ समाप्त-अर्घ-छंद सुंदरी-ऋषभ जिनको आदि मनाय के,अंत में महावीर सुध्याय के। : चतुर्विंश जिनगुणगाय के, जजत हूं मैं अर्घ चढायक ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीऋषभ देवादि महावीर .. पर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रम्यः समाप्त्यर्घ निवपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । छंद अडिल-जे चौबीस जिनेंद्रतनी पूजा करें, इंद्रादिक पदपाय चक्रि पद को धरें। कीरति द्वे सुफराय मान जगमें सही,अनुक्रम तें शिव जाय सर्व बहु बिधि लही ॥ २॥ इत्याशीर्वादः
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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