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. संग्रह
.अथ जयमाला। महाअर्घ-पारसनाथ जिनंद तने बच पोनभषी जरते सुन पाये।करो सरधान लहो पदआन भये पद्मावति चौबी०
शेष कहायो नाम प्रताप टरे संताप सुभब्यनको शिवशर्म दिखाये । हो विश्वसेनके नंदभये गुण गावत पूजन | हैं तुमरे हरषाय॥केकी कंठ समान छवि,बपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पग,बंदूं पारसनाथ ॥
- छंद मोती दाम-रची नगरी षट् मास अगार, बने बहुगोपुर शोभ अपार । स कोटतनी रचना ५७५
छबिदेत, कगूरन पै लहकै बहु केत॥१॥ बनारस की रचना जु अपार,करी या भांत धनेश तयार तहां विश्वसेन नरेंन्द्र उदार, करै सुख बाम सु दे पटनार ॥२॥ तजो तुम प्राणत नाम बिमान, भये तिन के घर नंदन आन । तबै पुर इंद्र नियोगनि आय, गिरींद्र करी विध न्हौन सु जाय ॥३॥ पिता घर सौंप गये निज धाम, कुवेर करे बसु जाम जु काम । बधेजिन दूज मयंक समान, रमैं बहु बालक निर्जर आन ॥४॥ भये जब अष्टम बर्ष कुमार, धरे अणु बत्त महा सुखकार । पिता जद आन करी अरदास, करो तुम व्याह भरो मम आस ॥५॥ करो तब नाह रहे जगचंद, किये तुम कामक सायक मंद । चढे गजराज कुमार न संग, सु देखत गंगतनी सुतरंग॥६॥ लख्यो यक रंक करे तप घोर, | चहुंदिस अग्नि बले अति जोर । कहे जिननाथ अरे सुन भ्रात, करे बहुजीव तनी मतघात ॥ ७॥ भयो तब कोप कहै कितजीव, जले तव नाग दिखाय सदीव । लख्यो यह कारण भावन भाय, नये | दिव ब्रह्मऋषी सब आय॥८॥ तबै सुर चार प्रकार नियोग, धरी शिविका निजकंध मनोग। करो बन