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चौबी० पूजन
संग्रह
पता
२० अथ श्रीमुनिव्रतनाथ जिन पूजा प्रारभ्यते॥
बखतावर सिंह कृत । कडषा छंद ॥ स्थापना-स्वर्गप्रानत तजो सब इंद्रन जजो आय हरि बंश उद्योत कीना। ।
मात पद्मावती पिता सुहमित्त जी धनु तन बीस छवि श्याम लीना ॥ अंक कच्छप सही अतुल शोभा लहीनगर राजगृही सुर रचीना।
थाप के नुति करूं चरण सिर पर धरूं कीजिये नाथ मम कर्म क्षीना ॥१॥ ओं ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्रावतराऽतवर संवौषट् आह्वाननम् । ओं ह्रीं श्री मुनि सुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । . ओं ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र अत्र मम संन्निहितो भव भव वषट् सन्निधी करणम् ॥
(अथअष्टक ) गीता छंद। जल-गिरि हिमन कुल को नीर निर्मल तथा सोमथकी करो, भरग कर तुम चरण पूजू जन्म मरण
जरा हरो,तुम सम न तारण तरण कोई अहो मुनिसुब्र धनी। हरि बंश नभ में आप शशि सम कांति सोहे अतिघनी ॥ 0 ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंच कल्याण प्राप्ताय जन्म मृत्यु जरारोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥