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________________ विमिन की। मध्यकाल में एक जमाना ऐमा भी आया जब तांत्रिकों का जोर बहुत बढ़ गया था और माघारण नर-नारी उनके भय से आतंकित रहते थे। आज भी जो हमारे ममाज में भ्रष्ट माधुओं का भय और जोर है वह उमी का प्रतीक है। महावीर की विचारधाग में नंत्र कोई भी उपद्रव नहीं कर मका। यह एक विलक्षण नथ्य है कि जैनाचार्यों ने नंत्र का गहन अध्ययन और विकाम किया परन्तु जैन विचाग्याग में विकमिन हुए तन्त्र ने कभी भी माघारण नर-नारियों को भयभीन नही किया। अधिकांग लोग नो यह भी नहीं जानते कि जन नत्र नाम की भी कोई चीज है। परन्तु कोई भी जैन मन्दिरमा नहीं है जिसमें धातु की गोलनग्नग्यि भगवान की मूनि के पीछे न मिले। उन न ग्यों पर तन्त्र विधिएं और मंत्र उन्कीर्ण है। जब अन्य धर्मों में नन्त्र के जोर मे भय और अमर पैदा करके, भत गक्तियों को जगा कर, माधारण मनग्य को इन करिश्मों में अपने मार्ग पर खीचने की प्रवृति मारी दुनिया में जोर कर रही थी उम ममय नीर्थकरों के अनयायी तंत्र का प्रयोग मनग्य को उन भयों मे मक्त करने में कर रहे थे। कहना न होगा कि आज जो माधारण नर-नारी तंत्र को धर्म और आन्माननि की चीज़ न ममझ अवरोध मममने लगे हैं, इम चेतना के जगने में मवम अधिक हाथ महावीर के गियों का रहा । एक गप्न ज्ञान को प्राप्त करके उसे केवल मनग्य की भय-मक्ति के लिए प्रयक्त करना और फिर उम काल के गर्भ में छपा देना-यह महान उदाग्ना और लोभहीनता जिम पग्म पुम्प के पदचिन्हों पर चल कर जैनाचार्यों को प्राप्त हुई वह पूरी मनुष्य जानि के लिये वन्दनीय है। 72
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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